Wednesday, April 22, 2009

Door khado yunhee

हर शाम अकेलापन , हर रात तन्हाई ...
हर सांस भारे है , हर सांस में गहराई ..

पहलू में हलचल है , और दिल में सन्नाटा ...
डरता हूँ उजालों से , कुछ समझ नही आता
दूर खड़ा यूँही , सोच रहा हूँ मैं
अपने बस्ती में , कोई कुछ नही पाता

सागर के लहरें भी सवाल उठाती हैं
जब रेत ही पाना है, तो किनारों तक क्यूँ आती हैं ?
दूर खड़ा यूंही, सोच रहा हूँ मैं
अपने बस्ती से क्या कुछ ले आती हैं ......

सुनसान अंधेरों में, चल रहा हूँ मैं
सवालों के लपटों में , जल रहा हूँ मैं
दूर खड़ा यून्हे ,देख रहा हूँ मैं
अपनी हे बस्ती में ढल रहा हूँ मैं .....

1 comment:

jitendra singh said...

awesome..i'm impressed.i hope it'll be more blazing in future,..keep it up.

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...