Thursday, December 24, 2009

याद

याद है क्या तुम्हे वो उस दिन धुप में नंगे पांव मकबरे तक जाना
वो लोगों के फेंके सिक्कों को उठा हर्षाना

दौड़ना उस बूड़े बाबा का लाठी ले कर
वो खेतों खेतों भागते नए गावं पहुच जाना
वो गन्ने तोडना खेतों से
हाथों को फिर सहलाना
वो नेहर किनारे बैठ ज़ोरों से चिल्लाना

गिनना फिर उन सिक्कों का
सिक्कों में जीवन पाना
याद है क्या तुम्हे वो उस दिन धुप में मकबरे तक जाना ???

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...