ये बालक
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जवानी की देहलीज पर खड़ा
समय के एक धक्के की प्रतीक्षा में
ये बालक
समझ कुछ दूर साथ चली पर
थक रही है अब लड़खड़ा रही है
नशे में धुत एक शराबी सी .
जलती आँखों से नींदे गायब
थके शरीर में सोने की इक्षा का अभाव
कुछ करने न करने में अंतर नहीं कर पाता
समय की छोटी सी खिड़की से
एक टुकड़ा आसमान यथार्थ का देख कर लौटा
ये बालक
जीवन के द्वंदों से जूझता
हांफता काँपता डरता गिरता सम्हलता
आगे बढता
ये बालक
डरता हूँ मैं
कहीं जो ये बोझ न उठा पाया
कहीं जो ये औरों की तरह खुद को न बदल पाया
कहीं कुछ बचपना शेष रह गया,
समय की मार से खुद को बचा कर यदि
कैसे फिर ये चल पायेगा सत्य की नग्न तलवार पर ?
सपनों का आकाश
तारों से सजी रात
और इसपर चमकता चाँद
जो इक इक कर के टूटने लगे
इस आकाश के तारे
जो घुलने लगे चाँद
सत्य के उजाले में
और जो खो jaaye ये सपने सारे
क्या वो रह पायेगा जो आज है
ये बालक ?
क्या ये एक क्षति नहीं होगी
क्या ये एक हत्या नहीं होगी
जो दम तोड़ दे
ये बालक ?
ये कैसा सत्य की जिसमे
कोई बालक नहीं
ये कैसा बड़ो का समाज
की जिसमे भावनाओं पर बाँध है
ये कैसी रात
की जिसमे सबका एक ही चाँद है ?
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, March 1, 2010
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
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