जब कभी शाम का सूरज टिका हो किनारे पर
लौट रहे हों परिंदे
ढल रहा हो दिन
और
आँखें दब दबा जाएँ तेरी
उठने लगे भीनी खुसबू भींगे गालों से
जब कभी क्षितिज तक उंगलिया दौड़ाने पर भी
न मिले अपना खोया सितारा
और नहीं लगता हो मन जब
किसी और तारे में
जब कभी चाँद उफक से ताकता हो
पूछता हो बेकरारी का सबब
और जब एहसास होता हो की
बस यूंही मन हुआ था
आज रोने का
और कोई बात न थी
इक बहनa था अपना सितारा खोने का
बस रो पड़े, के यूँही मन था आज रोने का
जब कभी धड़कन टोकने लगे
समय की सूइयों से होती हो चुभन
और यूँही जब मन उदास हो
प्यारा साथी न कोई पास हो
तब गीत मेरा वो
तुम गुन गुना लेना
और भूल jaana तुम सब कुछ
dheere se मुस्करा देना
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Chakresh
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Wednesday, March 10, 2010
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
1 comment:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
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