मुद्दत हुई मयकदे गए, नहीं है फुर्सत आज कल
मयनोशी का वो दौर था, नहीं है आदत आज कल
कुछ बात के जी नहीं लगता ऐ दिल तेरे शेहेर में
हर शख्स से जाने क्यूँ हमको है नफरत आज कल
दरवाजे घर के खोल कर, आये हैं हम चौक पर
जाओ सब कुछ लूट लो, भाति नहीं दौलत आज कल
कोई मिले तो दे चले हम सब कुछ अपना सौंप कर
हाथों में लेकर घुमते हैं अपनी वसीयत आज कल
क्या कहें 'चक्रेश' के जी लगता नहीं अब बज़्म में
हिज्र की रा-ना- ई-यों में दिखाती है जन्नत आज कल
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
2 comments:
VERY NICE,,,,,
itani jalldi kisi post pe comment nahi aaya tha ab tak :) ...dhanyaavaad Suman ji , Sanjay ji
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