Wednesday, June 2, 2010

अभिमान अवसरवादी होता है

अभिमान अवसरवादी होता है
एक सियार की ही तरेह .
नहीं तो ऐसा क्यूँ होता है कि,
दिन के उजाले में,
दफ्तर में बॉस की चार गलियाँ हंस कर सह जाने वाला आदमी
शाम को घर पहुँचने पर
एक ऊंची आवाज़ भी बर्दास्त नहीं कर पाता

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...