Monday, October 18, 2010

धूल से ढंकी कुछ किताबें


आज अनायास ही
घर के पीछे वाल कमरे से आलमारी में रखी
छठी की इतिहास की पुस्तक ऊठा लाया |
धूल से ढंके जिल्द पर
मेरे ही नन्हे कांपते हाथों से लिखा था
मेरा ही बचपन का भोला सा नाम |
एक एक कर के पलटता पन्ने और
सोचता के
समय के साथ
हर रिश्ते की ही तरह
किताबों से मेरा रिश्ता भी कितना बदल चला है
वो भोलापन
वो अपनत्व
वो मिठास अब कहाँ इस रिश्ते में भी ?
जीवन की आपाधापी में
जीवन कहाँ पीछे छूट गया
पता भी न चला
इन पीले पड़ते पन्नों में
इतिहास सा विषय
और भी गंभीर सा दिखा मुझे
हर पन्ने पे पुराने समय की एक नयी कहानी
कहानी वो
ज़मींदारों की विवशता के बीच लोभ की
वो किसानों की पीड़ा की
वो बुख्मरी
और
मेनचेस्टर में भारत के कपास की
बंगाल का वो तरसा देने वाला सूखा
पूना में किसानों की हाहाकार की

फिर न जाने कौन था वो
जो खींच ले आया मुझे दो सौ साल पीछे से
और अगले ही पल मैंने खुद को पाया
TV के सामने आज के समाचारों के बीच
सचिन का दुहरा शतक
CWG पर विश्व समूह की भारत को बधाई
और उसमें हुई धांधली पर लीपा पोती
अयोध्या में राम मंदिर बनाने का किसी नेता का वादा

मेरे घर के पीछे वाले कमरे में रखीं हैं
धूल से ढंकी कुछ किताबें

2 comments:

मिसिर' said...

अच्छी कविता है ,उदासी के रंगों में डूबी !
बधाई !

Neeraj said...

6th class ki history ki book se to lagta hian IAS ke general sytudies ki prep. ho jaayegi...:)

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...