Wednesday, October 20, 2010

सिन्दूरी आँचल शाम के बादल


सिन्दूरी आँचल शाम के बादल

चंदा का यूँ शर्माना
कितनी मधुर है प्रेम की बेला
कितना मधुर तेरा आना


इन साँसों की तुम सरगम हो
धड़कन की तुम हो शेहनाई
पल भर जो आकर मिलती हो
मिट जाती है सब तन्हाई
क्या मांगे अब वो इश्वर से
सोच में तेरा दीवाना

मन की गलियों में झंकृत हो
बन कर के पायल की धुन
वीणा की जैसे तान कोई हो
मीठा सा इक स्वर रुनझुन
लायी हो इंतना संगीत कहाँ से
मुझको ज़रा ये बतलाना



विधाता की कोई रचना हो तुम
क्या लिखे कहो तुमपे ये कवी
शब्दों में उतारे कोई तुमको
ऐसी कहाँ बोलो है ये छवि
रूप में जल के क्या हाल हुआ है
कैसे कहे ये परवाना





क्या होठों पे तुम रखती हो
हर शब्द कलि बनके ढल्कें
ये नयन दो मद से हैं भरे
मुस्काई जो तुम ये छलकें
सीख भी लो अब रूप पे अपने
थोड़ा  सा तुम इठलाना


सिंदूरी आँचल ....

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...