Monday, December 6, 2010

आज मुझे कुछ याद आई

इक छुई मुई सी नज़्म लिखी
और लिख मैं भूल गया
आज मुझे कुछ याद आई
आज मुझे कुछ याद आई

कुछ था जीवन पर शायद
या प्रेम की थीं कुछ बातें
आंचन रेशम की साडी का
हर डोर जीवन के नाते
आज मुझे कुछ याद आई

डर था उसको गली में बैठे
कुछ आवारा लड़कों का
उसके घर तक जाती वो
सुनसान अँधेरी सडकों का
आज मुझे कुछ याद आई

पैदल पैदल धीरे धीरे
चुप-चाप चली वो जाती थी
कुछ कम कम होने का मुझको
अहसास पल पल कराती थी
आज मुझे कुछ याद आई

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...