Tuesday, January 4, 2011

एक शून्य

फिर एक शून्य रख गया, जाता पल मेरी हथेली पर

एक सवाल

एक अनुभव

एक व्योम ...

नसों से रिस रिस कर कुछ खून

जमता गया समझ ki सफ़ेद परत पर

और धीरे धीरे

ह्रदय के कोने पथरीले होना शुरू हो गए ........

फिर एक शून्य रख गया,

जाता पल मेरी हथेली पर

एक सोच

एक मौन

एक चोट

जैसे खींच लिया हो झटके से किसीने

कोई बाल त्वचा का

एक तीस के बाद सम्भलते रोम में

रह गयी है वेदना ki तरंग कोई

No comments:

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...