Friday, November 25, 2011

नाम ३

तखल्लुस ढूँढने निकला था

फिर शाम, साहिल की गीली रेतों पर

और फिर वही बेनामी लेकर

लौट आया घर को मैं...

1 comment:

रविकर said...

बहुत खूब ||

आभार ||

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...