हमसे आबाद थी तेरी महफ़िल, खैर तू ये समझता नहीं है
हर घड़ी आज़माता अदम को, खुद कभी भी उलझता नहीं है
हमने सदिओं से चाहा तुझी को, पर ये वेह्शत बढ़ी जा रही है
तू अगर देखता है ये आलम, बोल फिर क्यूँ बरसता नहीं है ?
सुर्ख होटों पे भी आज गम हैं, नर्म आँखों के कोने भी नम हैं
ऐ खुदा! हाथ उठाये ये बन्दे, बोल क्यूँ तू गरजता नहीं है ?
फिर से जर जर हुयी हैं दीवारें, मेरे गाँव में कोई नहीं है
हँसते बच्चों की आवाज़ को क्या, ऐ खुदा तू तरसता नहीं है ?
फिर से वीराना सा छा रहा है, और शम्माएं भी बुझ रही हैं
हर शहर आज ईटों का है ढेरा , कोई पंछी क्यूँ दिखता नहीं है ?
(Written in reference to the blood bath going on in Syria)
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
1 comment:
सुन्दर ।।
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